छलावा …

 

हवा थमी सी थी वक़्त ठहरा हुआ था
मैं चल रही थी अनजानी राह पर
कुछ भी तो नहीं था पास
कोई भी तो नहीं था साथ!
सोचती थी क्या ऐसा ही रहेगा हमेशा?
अचानक ली वक़्त ने करवट
और एक तूफ़ान आया..
हवा ज़ोरों से चली मुझे अपने संग लिए…
इस आंधी से उठी एक ख़ुशी की लहर..
सोचने लगी में ये के बदल गए हालात..
अब कुछ तो था पास, कोई तो था साथ!
अचानक हवा थम गयी और रुक गए मेरे कदम..
बादल छंटे तो देखा वक़्त वहीँ थमा है..
सारा आलम वहीँ था..कुछ भी नहीं था पास, कोई भी नहीं था साथ!
और अब जान गयी हूँ मैं ऐसा ही रहेगा हमेशा!!!